भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

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Sunday, April 10, 2011

Maithili Wikileaks soon...


Maithili Wikileaks soon ...

See the original Maithili Wikileaks at http://ashantprashant.blogspot.com/



विदेहक वर्तमान अंकमे श्री दमन कुमार झाक Daman Kumar Jhaबालसाहित्य पर आलेख पढ़लहुँ। नीक आलेख अछि मुदा ई एकांगी बनि गेल अछि। प्रायः दमन जी मैथिलीमे बाल-गजल केर अवधाराणासँ अवगत नै छथि (http://anchinharakharkolkata.blogspot.in/2012/04/ashish-
 anchinhar-like-unfollow-post-27_08.html
 )। मात्र दू मासमे कुल बीसो गजलकारक बाल गजल अनचिन्हार आखर पर आबि चुकल अछि। जाहि महँक बहुत बाल गजल विदेहक वर्तमान अंक सहित प्रकाशित भेल अछि। तथापि दमन जी एकर सुधि नै लेलाह। आखिर किएक.....
अनचिन्हार आखर: बाल गजलक परिकल्पना
anchinharakharkolkata.blogspot.in
एहि ब्लागक मुख्य उद्देश्य गजल के लोकप्रिय बनाएब, गजलक मानकीकरण आ ओकर व्याकरण बनाएब अछि। संगहि-संग इ ब्लाग गजलक आडिओ-विडिओ, कैसेट आ सीडीक निर्माण मे अपन सहभागिता सेहो राखत। तकरा पछाति एहि ब्लागक मुख्य ध्येय मायानंद मिश्रक ओहि कथन के खंडन करब रहत जाहि मे ओ कहने छथि जे मैथिली मे गजल लिखले नहि जा सकैए।
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  • Gunjan Shree and 5 others like this.
  • Ashish Anchinhar विदेहक एक अप्रैल बला अंकमे हमर रिपोर्टमे एकर नीक जका उल्लेख भेल छै।.
  • Vijay Deo Jha हाँ दमन भैया त कोदो द क पढाई केलखिन हुनका किछु बुझल कोना हेतनि ? सब ज्ञान त अपने के अछि श्रीमान गज़लकार
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha-----की यौ श्रीमान् साहित्य अकादेमी पद लोभी विजय देव जी जखन अहाँ आ अहाँक लोभी भाए शंकर देव भीम भाइकेँ गारि पढ़ैत रही तखन दमन जीक ज्ञानक प्रति आस्था कतए रहए। जखन अहाँ दमन जीक पितेकेँ गारि देलिऐन्ह दूनू भाइ तखन हुनक पुत्र दमन जीक प्रशंसा आ चमचा गरी किएक। अहाँक आ अहाँक भाए द्वारा देल गेल गारि ऐठाम देखल जा सकैए----
    http://esamaad.blogspot.in/2012/01/blog-post_14.html

    ओना एक बेर फेरसँ हमर उपरका पोस्टकेँ पढ़ू ओहिमे दमन जीक आलेखकेँ बारेमे की कहल गेल छै श्रीमान् साहित्य अकादेमी पद लोभी विजय देव।

    ओना अहाँमे भीम भाइ आ हुनक पुत्रक प्रति जे बदलाव एला से स्वागत अछि आ हम उम्मेद करै छी जे ई बदलाव अहाँक पिता आ भाए दूनूमे आएत। ..
  • Vijay Deo Jha Ashish Anchinhar श्रीमान विश्व प्रसिद्द गज़लिस्ट उमर खैयाम के पितामह किछु बात अपने के स्पष्ट क देबय चाहै छी। प्रथम बात ई जे श्री दमन जी के शोध प्रबंध के विषय बाल साहित्य रहल छनि। हमरा जनतबे हुनकर शोध प्रबंध आ बाल साहित्य पर हुनकर ज्ञान अहाँ स बेसी छनि। अहाँ फेसबुक आ ब्लौग पर गारि कूड़ा अरकच बथुवा लिखी क अपना के साहित्यकार के रूप में स्थापित क रहल छी। अपने लिखलऊ आ अपने तिरपित होई छी। दमन जी स्थापित शोधकर्ता के एखन धरि दर्ज़नों आर्टकिल नेसनल आ इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित भ चुकल छनि। ग़ज़ल त ग़ज़ल होई छै महराज ई बाल ग़ज़ल आ दलित ग़ज़ल की होई छै ? से अपने स्पष्ट करब। दोसर बात अपनेक ज्ञात नै होयत हे भतरा ग्राम निवाशी जे आदरणीय श्री भीमनाथ झा हमर मामा सेहो छथि। आ हमरा सब गोटे के हुनकर आशीर्वाद सतत प्राप्त होइत रहैत अछि। लेकिन अहाँ के भाई कोना भ गेला? ई खटरास के कारण? हमरा जनतबे हुनका भाई कहि क वैह लोक संबोधित करै छथिन जे साहित्य में हुनकर समवयस्क छथिन। अपन साहित्यिक आयु कतेक श्रीमान। अगिला बात साहित्यिक विवाद आ मतमतांतर अपना जगह पर लेकिन अपनेके जानकारी द दी जे हमर पिताजी आ मामाजी साहित्य के एकहि स्कूल स रहल छथि। हुनकर सबहक़ वाद विवाद अपना जगह। ज्ञात हो साहित्यकार श्रेष्ट जे हमर पिताजी आ आदरणीय श्री भीमनाथ झा जी दुनुं गोटे के सम्बन्ध ओहि दिन स छनि जाहि समय अहाँ के पेंट पहिरबाक अवगति नै छल। अहाँ उम्मीद आ चिंता नै करू नै त मोन खराप भ जायत। अहाँ ग़ज़ल कुथू आ गजेन्द्र बाबु के चाकरी करू । बेस सवाल रहल हमर आ हमर भाई के लोभी होयबाक हम अहाँ के दुःख बुझै छी। अपना द की विचार अई अहाँ लोभी त छीहे मतिभ्रमित सेहो छी। ककर पमौज़ी करै छी आ किये से सर्व विदित। अपने छी नांगर डोलाउन धन बिन पेनी के लोटा। अहाँ ने गज़लिस्ट छी ने गायक अहाँ छी पमारिया के तेसर। आ हमारा अहाँ एहन तत्व के जबाब देबय अबैये। बात दमन भाईजी पर छल त अहांके ओते अवगति नै जे हुनक लिखल के अहाँ समीक्षा क सकियनि। दाढ़ी बढ़ा क कियो साहित्यकार भ जाय तखन अहाँ छी बड़का साहित्यकार
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha---जँ मामाकेँ अहाँ दूनू भाइ एतेक गारि पढ़ै छिऐ तखन तँ हमरा वा अनका जतेक पढ़ी से कम्मे हएत :):)

    गजल सदिखन गजल होइत छै ई ग्यान कहिया भेल यौ साहित्य अकादेमी पद लोभी विजय देव महराज। यौ कबिलपुरकेँ बुड़िलेल महाराज कथा तँ सेहो सदिखन कथा होइत छै तखन मुरलीधर झा कथी लेल। नाटक सदा नाटक होइ छै तखन एकांकी लेल रामदेव किएक।

    ओना ई गंभीर विषय छै जाहि लेल अहाँ सभकेँ बहुत अध्ययन करए पड़त। अहाँ सभ खाली गारिए-मारि लेल ठीक छी।

    साहित्यमे किछु विशेषण बराबर होइत छै, बाबा ( यात्री) आ भाइ साहेब ( राजमोहन झा)क उदाहरणसँ ई फरिच्छा जाएत।
  • Vijay Deo Jha Ashish Anchinhar I have inherited literature and not like you Mr Ashish Anchinhar who is borrowing and copying all these like a poor school children. I have been Kabilpur village a distinguished village which is also referred as Kabilpur (the land of wise). Do you understand what I am referring Mr Dunce. May I ask Mr. Dud do you refer uncle (your father) by his first name or you call him the husband of your mother? I refer it in response to your first name address to my father. Do you think that his prestige will be lowered down by such disgusted callings by mentally ill like you? Referring something to polish your understanding: Please read below:
    Gregor Johann Mendel took pain to experiment with pea pods to bring to us the kernel truth about genetics and heredity: Like Begets Like. Couple of years in literature and many a years in brazen chamchagiri of Gajendra Thakur and likes you continue to be raw even today. I will not inquire about the school you attended which failed to convert into biological animal to social animal. Let me take you to the tour of the world of literature. You have even not been capable of getting admitted in the kindergarten of literature and you claim so high. It may be also because of the reason that you are a ‘Notified Fool’ belonging to a notified school of ‘Non-Sense.’ Mr Gazalist may I ask you how many literary theories and dramatists you are aware of except Mr Gajendra Thakur. It is okay with Baba and Bhai Saheb. Baba bolna to samajh me ata hai kyun ki wah sabke baba rahe hain and respected Rajmohan ji was often referred as Bhai Saheb. They actually got a literary nickname. But so far my understanding of Mamaji is concerned only his co-age people refer him as Bhim bhai. It has yet not been approved literary. The right to call him Bhim Bhai is exclusively reserved for people who are equal to his stature. But you fool how come you compare yourself with him. Is just because of the reason that you wrote some non-sense stuff—better call it garbage—which you refer as Gazal. Hawwwww….you are a Gazalist! Wonder I will laugh dying and other may commit suicide when you start donkey recitation of your Gazal. As far as my being greedy is concerned Mr Super-Power-Greed what you were doing all these years, trying to grab assignments from Sahitya Akademi. I can bet that you will jump like a DDDDDDD on a petty loaf of assignment and likes. You better suit in the job of a panegyrist of Gajendra Ji likes. See Ashish I am courteous enough to refer you Lord with honorific ji. For that reason I also refer you with Ji suffix, as part of civilized discussion. Shoo off you. This is the wall of a gentleman (Daman Ji) my elder, a scholar in making. I will keep you poking this way. I know what is paining.
  • Vijay Deo Jha मैं सन 1985 के दौरान पैदा कुछ दुर्लभ प्रजाति के बागरों को जानता हुआ उसमे से यह एक आशीष अनचिन्हार भी है इसकी हाल में खोज हुई है। वैसे आशीष आपके जयेष्ट तो कोई हो नहीं सकते क्यूँ की दादा के उम्र के व्यक्ति को आप भाई कहते हैं। मूह खोलते हैं तो मुह से मल युक्त शब्द निकलते हैं। पता नहीं माँ बाप ने क्या संस्कार दिए क्यों की यह अपने से बड़े के लिए भी कभी आदर सूचक शब्द का प्रयोग नहीं करता है (शायद यह अपने पिता को भी प्रथम नाम से ही संबोधित करते होंगे) ज्ञानी इतने हैं की समस्त ब्रह्माण्ड को अपने छोटे से सर में घुसा रखा है सो अक्सर सर दर्द भी होता है। अब जैसा अन्न खायेगा जैसे लोगों के संगत में रहेगा तो विचार तो वैसे ही होंगे। यह तथाकथित धूर्त जो साहित्यकार बनने का ढोंग कर रहा है दरअसल एक टुच्चे क़िस्म का पागल बदतमीज़ बालक है। आप सही दिशा में बढ़ रहे हैं कांके का पागलखाना अब अधिक दूर नहीं है। बस दो कदम और। अभी पांच साल अनचिन्हार तुम तुम्हारा मालिक और उमेश और तुम्हारे जैसे कई बिलबिलायेंगे। Ashish Anchinhar
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha--सभसँ पहिने तँ आबी अहाँक अंग्रेजी बला टिप्पणीपर। बाबू विजय देव अहाँमे साहित्य अनुवांशिक रुपें नै अछि, ई साहित्य अनुवांशिक रूपें भैए ने सकैए। ओना एकटा लक्षण जे अनुवांशिक रूपें आएल अछि अहाँमे ओ थिक... गारि पढ़ब आ मारि करब। ई लक्षण अहाँमे बहुत उच्च कोटिकेँ अछि कारण जकरा अहाँ गारि दै छिऐ तकरा मामा-नाना, कक्का, भैया बना लै छिऐ। भीमनाथ झा जीकेँ पहिने अहाँ गारि दै छिऐ आ आब हुनका मामा कहै छिऐ.. वाह.... कतेक कहू नचिकेता, सुभाष चंद्र यादव, शरदिन्दू चौधरी, आदि अहाँक ऐ लक्षण केर शिकार भेल छथि। एकटा बात आर अहाँमे ई लक्षण एकभगाह नै अछि दूनू दिससँ अछि मने नाना आ बाप दूनूक लक्षण अहाँ आ शंकर देवमे नीक जकाँ सन्हिआएल अछि। ओना एकटा बात आर कहबी छै जे जेहन खोजलह हो कुटुम तेहन भेटलह हो कुटुम। अहाँ सभ दूनू पक्ष ( पैतृक आ मातृक) गरिखड़ छी तेहने तेहन लोक सभकेँ ताकि क' कुटुमैती करै छी, ओही कड़ीमे छथि विदित जी। अहीँक संबंधी छथि ने यौ जे बुढ़ारियोमे भद्र महिला जे एडवाइजरी बोर्डमे छलखिन्ह तकरा संग केर घटना ओहिकेँ बाद एकटा आर एडवाइजरी बोर्डमे रहल पुरुषकक बेटीक संग गलत बेबहार करै छथि।
    तँए हम कहलहुँ जे साहित्य अहाँक अनुवांशिक नै अछि बल्कि गारि-मारि अहाँक अनुवांशिक अछि।:)

    आब हम आबी अहाँक दोसर टिप्पणीपर जे हिन्दीमे अछि। ऐ टिप्पणीकेँ पढ़लासँ सभकेँ ई विश्वास भ गेल छै जे अहाँ दूनू भाए वास्तवमे मारिए-गारि लायक छी।:)

    आब आबी दूनू टिप्पणी केर सम्मलित प्रभावपर। जेना गाम-घरमे मूर्ख लोक सभ बेसी तमसेलापर कचराही हिन्दी बाजए लागै छै तेनाहिते अहाँक ई अंग्रेजी बला टिप्पणी अछि, सेहो नै सम्हरल ओही टिप्पणीमे एक पाँति हिन्दी आबि गेल अछि। दोसर टिप्पणी तँ हिन्दिएमे अछि सेहो कचराही।
    बाबू विजयदेव जखन अंग्रेजी नीक जकाँ अहाँकेँ नै अबैए तखन लिखै बेकार छी मुदा अहाँ करबे की करबै ई अहाँक तामस आ गारि पढ़बाक प्रवृति तँ अनुवांशिक अछि।:)
  • Vijay Deo Jha हाँ हाँ भरी दुनिया के ज्ञान अहिं गधा में आबि गेलनि जिनकर नाम भकचोन्हर दास साहित्यकार बनै छथि आ ताहि पर स गज़लिस्ट. अहाँ अपन बाप क बेटा छी ने ओ निश्चित क लिया मूह कान आ चरित्र छनि हरवाह सन के मूह पर लगाम नै आ छथि साहित्यकार. परतर करै लेल परेशान छी हमरा स आ हमर परिवार स. अहाँ के बानर स मनुख बनय में शहस्त्र सताब्दी लागत. अनचिन्हार अहाँ त बाद प्रसिद्ध लोक प्रसिद्ध छी साहित्य में आ हमरा एहन अनाम लोक स झगड़ी रहल छी लोक की सोचत जे एहन महान गज़लिस्ट के एहन अश्लील भाषा. हमर अंग्रेजी बुझी गेलियें मुनीम जी. अन्चिन्हार अहाँ के बुझा दी जे अमर्यादित भाषा के प्रयोग करब त कुकुर के मारि खायब ककरो हाथ स अ तखन किकियाबाब Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha आशीष अनचिन्हार महान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्ट. महान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्टमहान ग्जलिस्ट महान ग्जलिस्ट
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha--हमर मूँह कानकेँ छोड़ू... अहाँ अपन देखि लिअ। सभ देखि रहल अछि जे झगड़ा के शुरू केलक। हमरा तँ बानरसँ मनुख बनएमे सहस्त्र शताब्दी लागत मुदा अहाँ सभ बापुतेकेँ कुकुरसँ बानर बनएमे सहस्त्र शताब्दी लागत। अमार्यादित भाष केकर छै आ केँ मारि खा रहल छै से लोक जानि रहल छै...
  • Vijay Deo Jha से बात उमेश आ गजेन्द्र स सेहो पूछी लेबै एकटा अपन बाप के पुरस्कार दियेबा लेल आ अपना पत्नी के पुरस्कार दियेबा लेल किये दरबारी क रहल छलाह. सोझ त क देब.
    कुकुर नढीया, बागर, बिलारि, बानर, प्रचंड, लतखोर, मुर्ख, बाप के भाई कहै बला लोक सब स साहित्यिक भाषा में गप्प नै होई छैक अनचिन्हार बाबु Ashish Anchinhar
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha--हँ एखनो अहाँ अपन अनुवांशिक भाषा केर प्रयोग कए रहल छी :):)
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha--आ अंतमे फेर कही विजयदेव जी जे गारि-मारि करब तँ अहाँ सभहँक अनुवांशिक गुण अछि अहाँ सभ की जाने गेलिऐ साहित्यिक भाषा.... :):)
  • Vijay Deo Jha Ashish Anchinhar मैं तुम्हारा रिकॉर्ड नहीं रख रहा हूँ अनचिन्हार तुम मेरा रिकोर्ड रखो क्यूँ की तुम जैसे लोगों का रिकॉर्ड कही और भी होता है. और तुम यही कर सकते हो फेसबुक ओर ब्लौग पर रिकार्ड और गली गलौज. पुछा आपने की इस तरह के भाषा का प्रयोग इसकी शुरुवात किसने की थी गजेन्द्र ठाकुर उमेश और तुम. तुम मुझे जानते हो गजेन्द्र मुझे जानते थे उमेश मुझे जानता था? फिर मैं कहाँ से आ गया? मेरे खिलाफ किस ने कैम्पेन किस ने शुरू किया था ब्लॉग पर जबकी मुझे मैथिलि और साहित्य अकादमी से कोई लेना देना कभी रहा ही नहीं. तब नेरा नाम क्यूँ घसीटा गया मैंने गजेन्द्र ठाकुर से भी कहा की मुझे आप अपनी राजनीती में न डालें. अब सुनो अनचिन्हार अपने पोस्ट देख और अपने ग्रुप के लोगों का उनलोगों ने किस भाषा का प्रयोग किया है. तुम और तुम्हारी टीम की इतनी औकात हो गयी और तुम्हारा संस्कार इतना गिर गया की तुम अंधे हो गए की यह भी भूल गए की भाषा का इस्तेमाल कैसा हो. लिखने के मामले में तहजीब को तुम ने तिलंज़ली दी है पहले. अनचिन्हार गलत भाषा आरोप लगाने वाले और टिपण्णी करने वालों को मै ऐसे नहीं छोड़ दूंगा. मैंने बस लिख रहा हूँ और कुछ नहीं. तुम लिखोगे जबाब दूंगा जाओ ग़ज़ल लिखो ग़ज़ल. हद है अनचिन्हार तुम जैसा बदतमीज़ साहित्यकार कैसे हो सकता है
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha--गलत। जखन अहाँकेँ साहित्य अकादेमीसँ कोनो मतलब नै तखन अहाँक नाम अकादेमीसँ एसाइन्टमेंट लेबए बलामे किएक अछि। आर टी आइ द्वारा सभ आबि चुकल अछि आ अहाँ सेहो देखि लेने छी।

    ओना अहाँकेँ हम फेर कहब जे साहित्यिक चर्चा अहाँक अनुकूल नै कारण मारि-गारि अहाँक अनुवांशिक लक्षण अछि आ बदतमीजी अहाँक परिवारमे भरल अछि। आ भारत-नेपाल दूनूक मिथिला ई बात जनैए
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha---की बिगाड़ब अहाँ हमर ? अहाँ सभ लेल एकट कहबी छै जे उखड़ए किदन ने आ भाँजी तलवार :):)
  • Vijay Deo Jha मैं तुम्हें तो महान ग्जलिस्ट बना कर ही दम लूंगा अनचिन्हार मानूंगा नहीं
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha---अहाँ सन गरिखड़ केर सर्टिफिकेट केकरो नै चाही। हमर तँ बाते छोड़ि दिअ विजयदेव :):)
  • Vijay Deo Jha एकटा और कहबी जाऊ बालक बागर जाऊ ग़ज़ल कुथूAshish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha सर्टिफिकेट मैं कैसे दूंगा अनचिन्हार तुम तो हो ही द्वारपाल उसके Ashish Anchinhar
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha---ओना अंतमे हम फेर कहब जे अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव :):)
  • Vijay Deo Jha हाँ हाँ अपने महाकवि, जे विद्यापति हजाम बना देलियनी. अनचिन्हार जी मैथिलि साहित्य के शिरोमणि बड़का गजलिस्ट ग़ज़ल कुत्थाAshish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha चाह आप पान के दोकान पर अपने के नीक श्रोता भेटत गज्लेश Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha हमरा सुचना देल गेल जे आशीष, गजेन्द्र आ उमेश ई तीनूं डाक्टर रमण झा (मैथिलि) के पुत्र सुमित आनंद के मार्फ़त हमरा धमकी देलक जे ओ हमरा हमर पिताजी आ हमर भाई के जेल करवा देत. Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha waih Viditji ke badault ahan ke masiyaut Umesh ke baap ke puraskaar bhetlai kudu katek kudab se kudu apan maath nochi liya Ashish Anchinhar
  • Ashish Anchinhar @vijay deo jha---ओना अहाँकेँ जिनका लगसँ सूचना भेटल अछि से कोनो बैध सबूत नै अछि विजय देव मुदा ऐ ठाम जे अहाँ हमरा बिगाड़ि लेबाक धमकी देने छी से साइबर क्राइमकेँ तहत वैध छै आ अहाँके जेल भए सकैए।

    बाद बाँकी हम वएह कहब जे अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव..
  • We Maithil We Maithil he babu bhaiya sab dunu gote padhal likhal chhi aa dunu gote nikrist bhakha ke prayog karai chhi. dunun gote me s kiyo Maithili ke sewak nai lagi rahal chhi. Asis ji Bijay ji kal jori ka vinati k rahal chhi
  • Ashish Anchinhar पहिने तँ We maithil जी अहाँ अपन असली परिचय दिअ
  • Ashish Anchinhar @Vijay deo jha-----
    की साहित्य अकादेमी पुरस्कार विदितक बापक छै की जे ओ जगदीश प्र. मंडलकेँ दए देथिन। ई विदित तँ केने रहथिन जगदीश प्रसाद केर पोथीक विरोध मुदा धन्य कहू ओहि तीनू जूरीक बुद्धिकेँ जे विदितक चुत्तरपर लात मारि भगा देलखिन।...
  • Vijay Deo Jha सवाल रहल हमारा जेल करेबाक सेहो साईबर क्राईम के अंतर्गत भंते भतरा देश के हरेक जिला में एकटा स्पेसल आशीष कोर्ट खोलवा लिया आ जतेक मोकदमा लड़वाक हो से लरू। अहाँ डाक्टर राजेंद्र बाबु के पितामह छी ते कानून के सब सअ पैघ जानकार सेहो। कहबी छै मूष मोटैहई लोढ़ा हो होईहैं। अहाँ मूष के मूष रहब अपन आका के जन। ई जे 50 फर्जी साईट खोलि क भयादोहन कअ रहल छिये तअ पहिने अपन घर दुरुस्त कअ लियअ बौवा। ई अहाँ नै ई दू नमरी धंधा के पैसा के गरमी के असरि अई। कुथि काथि कअ बौवा भेला बीए पास तअ बनि गेला साहित्यकार सेहो ग़ज़लकुत्था। की करइ छथि बौवा तअ खबासी। अनकर रचना आ पोथी में से शब्द आ भाव चोरा चोरा कअ एकटा बनि गेला नाटककार। संस्कार देखा रहल भाषा में। साहित्य अकादमी विदित जी के पिता के नै छनि से सत्य ओ तअ अहाँ के बाबूजी के बपौती छनि। चुत्तर शब्द के चयन नीक लागल होऊ चुत्तर पर एकटा ग़ज़ल लिखू। Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha हमहूँ एकटा ग़ज़ल लिखल तीन तिलंगा तीनूं लंगा करैये दंगा आ दरभंगा करबउ चंगा नै ले पंगा बिकेतऊ अंगा मुरी गोतिक तोरा नहेबउ गंगा
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha-----जखन अहाँ हमरा मैसेज जाहि भाषामे केने रही ताहि कालमे शब्द चयन कतए गेल रहए अपनेक--------कने देखि लिअ की मैसेज केने रही अहाँ------------

    हे रे अशीषवा, गजेन्द्र के पोसुवा, पतचटवा औकात देख क बात कर बालगोविन्द जनामि क ठाड़ भेलौं ने की कहै जे छै नबका जोगी के गांडी में जट्टा...........

    हम तँ मात्र चुत्तर पर अटकल छी मुदा अहाँ त गाँड़ि धरि पहुँचि गेलहुँ इएह तथ्य प्रमाणित करेए जे " अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव.."...
  • Vijay Deo Jha आपने किसकी मर्यादा और सम्मान को सुरक्षित रखा है अनचिन्हार जो आज मर्यादा पुरुष बने बैठे हैं। ये आप बद्तमिजों की जुगलबंदी बिना इस बात का ख्याल किये की कौन आप से बड़ा है कौन छोटा। क्या बोलना चाहिए क्या नहीं। विवाद का स्तर क्या होना चाहिए अपने ब्लौग में क्यूँ नहीं झांकते। मैं तो ऐसे ब्लौग नहीं लिखता। साहित्यकार बन बैठे और शब्द चयन इतना निम्न और उस पर से यह दावा की गज़लकार है, नाटककार है कवि हैं। कुछ नहीं है आप लोग। 1985 की पैदाईस अनचिन्हार आपने पूर्व में और लगतार जिस तरह इन शब्दों को मेरे लिए इस्तेमाल किया, उससे मैं मान कर चल रहा हूं कि ये अभद्र शब्द नहीं है. आखिर आप संस्कारवान आदमी होंगे? कोई भी पूछ सकता है- क्यों अनचिन्हार जैसा महान लेखक कवि ने ऐसी भाषा कहां से सीखी? ऐसा गंदा संस्कार कहां से आया? कभी फुर्सत मिले तो अपने पोस्ट के कंटेंट को भी देख लें और अवलोकन कर लें की क्या विवाद की यही भाषा होती है और क्या विरोध करने के लिए कोई व्यक्ति क्या झूठ के निचले पायदान पर खड़ा हो जाएगा। पोर्न साईट देखने से स्खलन होने की शंका हो सकती है लेकिन आपके और आपके आकाओं के साईट को पढ़ कर बुद्धि का स्खलन तो निश्चय है।
  • Vijay Deo Jha अहाँ अभद्र आ अमर्यादित भाषा के प्रयोग लेल तअ 50 वेब साईट खोलने छी ने ओ सब लोक के नै पढ्बई छियै?
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha----जखन शंकर देव , अहाँ आ अहाँ सभहँक चमचा, बेलचा सभ आन आन साहित्याकर सभकेँ गारि पढ़ै छलै तखन ई विचार कहाँ गाएब छल। योगानंद झाक माध्यमसँ जे गारि बला चिट्ठी सभकेँ जाइ छलै तकर पहिने हिसाब दिअ विजय देव।

    अहाँ लेल ५० टा नै मैथिलीक जतेक साइट अछि सभहँ सूची ऐठाम देखू आ दुनियों देखत जे केकर भाषा नीक आ खराप छै http://videha.co.in/feedback.htm

    जहाँ धरि पोर्न केर बात छै तँ बाबू जखन विदित जी जखन खुलेआम सभहँक सामने एकटा एडवाइजरी बोर्ड केर महिला आ दोसर एडवाइजरी बोर्ड केर बेटी केँ पीठपर हाथ देलखिन्हॄ तँ हमर सभहँक पोर्न तँ कम्मे अछि। :P:P
    videha.co.in
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  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha----ओना हमर फेर कहब जे ----अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव.."...:P:P
  • Vijay Deo Jha ट्रक ट्रांसपोर्ट के खलासी किरानी चलल खानदानी बनय आ ताहि पर सअ साहित्यकार हेबाक दावा ओह। अहाँ अपन खानदान में प्रथम बीए पास आपका विशाल और विकट स्वरुप मेरे लिए परेशानी पैदा कर देता है की मैं आपको मानू ? कभी कभी आप खुद को गज़ालिस्ट कहते हैं तो दुसरे ही पल आप अशिष्टता के आचार्य लगते हैं। यह तय कर पाना काफी कठिन होता है की क्या आप सचमुच में ग वर्ग समुदाय के तो नहीं हैं। आप लगातार अनुवंसिकता पर अपना गंभीर ज्ञान दिए जा हैं आप महोदय तो ऐसा प्रतीत होते हैं की आपने मेरे परिवार पर अनुवांशिक प्रबंध कर लिया है। ऐसे में मुझे आप जार्ज मेंडल के साक्षात् फुफेरे लगते हैं। अगर आप ने सचमुच में अनुवंसिकता पर इतना अध्ययन किया है तो अपने परिवार के आनुवांशिक इतिहास पर जरुर ही शोध किया होगा। अपने पुरखे के बारे में बताएं कम से कम हम लोगों को यह समझने में आसानी होगी की आप के कुलभूषण खरबंदा बनने में किस अनुवांशिक तत्व का योगदान रहा है। रही पीठ पर हाथ धरने की बात तो यह सब उस वक्त भी सोचना था और बोलना था जब एक महोदय पिछले पांच सालों में विदित जी को अपने पत्नी की लिखी तथाकथित पुस्तक भेजा करते थे बस पुरस्कार की लालसा में। इस किस्म के सिफारसी व्यवहार आपलोगों के आदत में शामिल है। आप कृपया अपने नाम में संसोधन करें पहचान बनाने की आपकी कोसिस आपको हँसी का पात्र बना रही है Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha यह आपने अपने कमेन्ट में अपनी तस्वीर क्यों लगा दी ये वाली :P:P आप identity crisis से ग्रसित हैं विस्वास रखिये की आपके चेहरे से ही आपके संस्कार और biological identification झलकता है
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha---वाह विजय देव............ एकटा कहबी छै जे लोक जेहन अपने रहै छै तकरा सगरो दुनियाँ तेहने बुझि पड़ै छै.... मतलब जे चोर लेल सगरो दुनियाँ चोरे बुझाइत छै। राम देव झा जखन " कविता कुमारी " मने अपन बेटीकेँ लालदास कृत रामायण लेल पेंटिंगस लेलाह तखन ई ज्ञान कतए छल। जखन रामदेव झा " राजमाया देवी " सँ ल' क' योगमाया देवीकेँ बजारमे उतारि देलखिन्ह तखन ई ज्ञान कहाँ छल। लगैए जेहने अहाँ छी अहाँक परिवार अछि तेहने सभकेँ बुझै छिऐ। अहाँ सभ अपन माए बहीनिकेँ बजारमे उतारि साहित्य अकादेमीमे जे लूटि मचौलिऐ ताहिसँ लगैए जे अहाँ सभकेँ ई बुझाइए जे आन लोक सभ सेहो एहिना करैत हेतै। मुदा अपने जकाँ निर्लज्ज आ हेहर थेथर आ बेहया दोसरे लोककेँ बूझब उचित नै :P:P
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha----ओना हमर फेर कहब जे ----अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव..:P:P
  • Jawaharlal Kashyap vijay dev g sahitya kakro bapauti nahi chai
  • Jawaharlal Kashyap neek kapda sa kakro sanskar nahi bha jayat chai
  • Vijay Deo Jha हाँ सही कहल जेना चस्मा पहिरने आ दाढ़ी बढ़ने स कियो साहित्यकार नै भ जाई छै Jawaharlal ji
  • Jawaharlal Kashyap ahank rachana aa samalochana padhla k bad ham kichu kahab. ona atek nparichay kafi achi
  • Vijay Deo Jha Ashish Anchinharआशीष बाबु बात सही कहल लेकिन अपने के ज्ञात होयत जे साहित्य अकादमी साहित्यिक गतिविधि क संस्था अछि। ज अहाँ क माय (मने हमर पितियानि) आ अहाँक बहिन (हमर सेहो) के कोनो साहित्यिक का कलात्मक अभिरुचि छैन्ह तअ निश्चय हुनको मौक़ा भेटक चाही आ भेट सकैत अछि। अपनेक विदित होयत जे अकादमी में गोईठा पाथबाक आ सुपहा थोपबाकs एसाइनमेंट के कोनो स्कोप नै छै। जां एहि युग में डार्विन रहितथि तs ओ अहाँ के भरि पाँज धs लेने रहिताथि। अहाँ में ओ सब लक्षण अछि जे ---------- अस्तु छोडू। साहित्य अकादमी के हाता में बड्ड घास छै। हम तs अहाँ के शब्द में नीच पतित आ सब किछु छी लेकिन हे युग गज़लिस्ट अहाँ ग़ज़ल छोडि की गीज़ रहल छी। ओना एकट़ा बाल साहित्यकार के किलकारी दs रहल छथि। पांच साल धरि अहाँ क मालिक विदित जी के पांच मोन स बेसी माछ खुवा देलखिन लेकिन पुरस्कार नै भेटल से तs दुःख उचित। आप अहाँ ठेका पट्टा रुदाली क काज करै छी। मोन लगा क बिहुनी लिखू। ओना अजीत आज़ाद जी अहाँ क सन्दर्भ में जे किछु कहलनि से सही निकलि रहल अछि।
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha-----सभसँ पहिने हम अजित अजादपर आबी। अहाँकेँ ओ ऐ तरहें कहता से तँ हमरा विश्वास नै अछि कारण ओ बड्ड नीक लोक छथि.... अहाँ सभ जकाँ नै। मुदा भए सकैए जे अहाँ अजितकेँ फोन केने हेबन्हि तँ ओ अहाँकेँ टारबाक लेल हमर बुराइ कए देने होथि से संभव। कहबी छै ने जे बेकूफकेँ दूटा पाइ दए दी मुदा बुद्धि नै तँए अजित जी हमर बुराइ कए देने हेताह। मुदा हम जे लीखि रहल छी जे अहाँक टिप्पणीक अधारपर ---- हम तँ ई बुझि रहल छिऐ जे अजित अजाद एहन नीक लोक किछु बजनेहे नै हेताह।..............अहाँ सभ जे अजित एहन गाए आदमीपर विदित केर चमचागिरी आ ६० लाख रुपैया सहित अकादेमी किनबाक जे आरोप लगेने रहिऐ ताहिकेँ बाद..... अजित जी एहन नीक लोक अहाँ सभसँ गप्पो केने हेताह से असंभव बुझाइए।.............................मुदा अजित अजाद जी जे अहाँ आ अहाँक परिवारक बारेमे उमेश मंडलकेँ कहने छलखिन्ह से बिल्कु्ल सटीक आ उचित छल। एकबेर कने आर कष्ट कए अजित जीसँ फोन कए पुछि लेब जे ओ अहाँक परिवारक बारेमे की कहने रहथिन्ह :P:P

    अहाँक ई बात पूरा सत्य अछि जे साहित्य अकादेमीक हातामे बड्ड घास छै मुदा ताहिमेसँ जे " संधि-समास", "लाबनि परक दीप" आ " जगले रहबै" नामक हानिकारक आ विषयुक्त घास छै तकरा हटेबाक लेल तँ घुरपी आ कोदारि तँ चलाबहे पड़तै।

    अहाँक ईहो बात पूरा सत्य अछि जे डार्विन जँ हमरा देखितथि तँ बड्ड खुशी होइतथि। मुदा कने अहूँ सोचियौ जे ओ खाली हमरे किएक देखताह। हमरा देखलाक बाद ओ तुलना करबाक लेल ओ अहाँ सभकेँ देखितथि। आ देखितहि झूर झमान भए जैतथि.. किएक से पोजिटिव आ निगेटिव दूनू तरीकासँ अहाँ सोचि लिअ :P:P

    आब कने आबी माछ भातपर । ओना विदित जीकेँ तँ केओ माँड़ो भात नै पूछै छनि तँ माछ भात कतएसँ। ओना मोहन भारद्वाजकेँ अहाँक पिता अपन डेरापर बजा कए माछ भात कुआ कए जे भरत मिलानी केने रहथि से सभकेँ बुझल छै। आ तँए अहाँक ई बुझै छिऐ जे दोसरो लोक सभ माछ भात खुआबैत हेतै। खएर ऐमे अहाँक दोष नै अछि कारण ई दोष तँ अहाँमे अनुवांशिक रूपें आएल अछि :P:P

    अंतमे जँ किनकोमे कलात्मक अभिरुचि छै तँ स्वागत हेबाक चाही। मुदा एकै दिन किएक। जे महिला सभ भरि जीवन पेंटिंग बनबैत रहलीह तिनको ई काज देल जा सकै छलै। मुदा से केना संभव हएत.... कारण जखन अनुवाद पुरस्कार चालू भेलै तखन अमर-रामदेव अनुवाद शुरू केलाह आ तेना केलाह जे जीवनक पहिल आ अंतिम अनुवाद भेल। स्पष्ट अछि जे मात्र पुरस्कार लेल ई अनुवाद छल। तेनाहिते कविता कुमारी वा राजमाया -योगमाया देवी प्रतिभा पहिल आ अंतिम भेल। एकरो कारण स्पष्ट अछि जे मात्र अकादेमीक पाइ दुहबाक लेल एक दिनक प्रतिभा सभ छल :(:(
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha---ओना हमर फेर कहब जे ----अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव..:P:P
  • Gunjan Shree @ Ashish Anchinhar, नहीं बुझल हेतैनी सर इ बात हुनका....:-D:-D
  • Ashish Anchinhar Gunjan Shree----बूझि तँ ओ सभ रहल छथिन्ह मुदा लोभक कारणें जे आँखि आ बुद्धिपर पट्टी बान्हल छन्हि से उतारए पड़ि रहल अछि हमरा।..
  • Gunjan Shree हा हा हा,नीक बात सर.....:-D:-D
  • Vijay Deo Jha Ashish Anchinharबड जल्दी दोस्तियारी भ गेल श्री अजीत जी स काल्हि तक त अहाँ हुनका गारि स तsर केने रहियानि। आ अहाँ एहि निष्कर्ष पर कोना पंहुचलउ जे ओ अहाँ के निंदा केलनि से बात त हम नै लिखल। ओ त कहि रहल छलाह जे अहाँ महात्मा प्रविति के व्यक्ति छी जे श्राप बस एहि जन्म में कुल हीन क्रियाहीन भ जन्म लेलहूँ। अजीत जी हमरा एहो बात कहने रहथि जे ओ श्री जगदीश मंडल जी के पुरस्कार देबाक बिरोध विदित जी स दर्ज करौने छलाह। हम ई बात किये कही जे ओ अहाँ के बागर कहलनि। जहां तक रहल घास के बात त ओकरा कोर ताम करइ के काज अहाँ लs सकै छी। जानकारी हो अपनेके जे हमर पिताजी खबासक नाम पर सेहो टाका बनौलनि अहाँ जs ओहि समय रहितौ तs शायद अहूँ के फायदा होईत। कारण जे अहाँ कलम स बढ़िया घुरपी आ कोदारि चलाबय में निपुण छी।

    आब कने आबी माछ भातपर । कने अपने मालिक स मनगुप्ती क लेब ओ अहाँ के बतौता । अहाँ लिखल मोहन भारद्वाज त की ओ अहाँ के संगतुरिया छथि? ई संस्कार के देत जे ककरो नाम के पहिने आदर सूचक शब्द लगाबी। अहाँ प्रमाणित करू जे अहाँ के नीक संस्कार भेटल आ सभ्य समाज में उठs बैसई के लायक छी। 1985 पैदाईश अपने पाकल परोड़ छी। डार्विन हमरा स्वपन दर्शन में कहलनि जे आशीष हुनकर शोध लेल सब सs उचित प्राणी छथि। जखन अनुवाद पुरस्कार चालू भेलै तखन श्री आशीष जी अपन पोन सs नेटा पोछे छलाह। ओही समय कोन क्लास में पढैत रहियई अपने? ओना स्मरण दिया दी जे अपने सन प्रतिभाशाली आ प्रसिद्द व्यक्ति महान गज़लकार, नाटककार, कथाकार, ग़ज़लकुत्था के उचित सम्मान जरुर भेटबाक चाही।
  • Vijay Deo Jha This is your post gentleman regarding Ajit Azad will you negate it what you have written. Jut tell us the fact. What forced you to be friend,. Just tell us Mr Ashish had you not publicly abused Ajit ji. अजित आजाद नहिये अखन धरि माफी मंगने छथि आ नहिये अखन धरि ऐ रणजीत चौधरीक आइ.डी.केँ प्रयोग वा सह देनाइ बन्ने केने छथि। एकर प्रमाण अछि जे एतेक बेइजत्तीक बादो ओ अपन "मिथिला अवाज" ग्रुपपर ऐ फेक द्वारा (नमस्कार मिथिला जेकरा फेक नै कहि रहल छथि, तँ प्रमाणित भेल जे ई तूनू मिलल छथि)मुन्नाजीक चोरि कएल गजल अखनो विराजमान अछि, ने ऐ फेक पर कोनो कार्वाइ कएल गेल छै। साबित भेल वा बाकी अछि? मुदा ई लोकनि माफी कोना मंगता। पहिने नवारम्भ पत्रिकामे त्रिकालज्ञक फेक आइ.डी.सँ अजित आजाद जे धंधा करै/ करबै छलाह से "मिथिला अवाज" मे रणजीत चौधरीक माध्यमसँ करबा रहल छथि। नमस्कार मिथिला जी, ऐ रणजीत चौधरीकेँ अहाँ चिन्है छिऐ ने, आ अजित बाबू सेहो चिन्है छथिन्ह, तखन ओ मुन्नाजीकेँ किए कहलखिन्ह जे ओ रणजीत चौधरीकेँ नै चिन्है छथिन्ह? की ई फेक आइ.डी. वा अहाँ सभक छाया मिइत्र मिथिला अवाज कार्यालयसँ ई कुकृत्य तँ नै कऽ रहल अछि? — with Gangesh Gunjan and 99 others.
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha-----सभसँ पहिने फेर हम अजित जीक चर्च करी ओ वास्तवमे हीरा आदमी छथि मुदा जहियासँ अहाँ सभ मने ( अहाँ आ अहाँक परिवारक लोक जे की नीच पतित आ पामर सभ छथि) तिनका संपर्कमे अएलापर केखनो काल कए गड़बड़ा जाइत छथि मुदा ओना ओ गाए छथि। हुनक बहुतो मित्र चर्च करैत रहै छथिन्ह जे अजित जहियासँ दरभंगा परिसर सेवलक ( मिथिलाक अवाजसँ पहिने) तहियासँ ओकर स्वतंत्र बुद्धि हेड़ा गेलै तँए केखनो काल कए अजित जी गड़बड़ा जाइत छथि आ तखन हमरो मजबूरीमे हुनका टाइट करहे टा पड़ैए आ हमरे किएक कहियो राजमोहन झा जीक बेटी रूपा झा सेहो समय-साल पत्रिका केर माध्यमसँ हुनका टाइट करै छथिन्ह तँ अपन जीवित अवस्थामे साकेतानन्द जी सेहो अपन ब्लागपर अजित जीकेँ टाइट केने रहथिन्ह। ओना अजित जी हीरा आदमी छथि। ओना एकटा बात हम अपन मुँहसँ ई केना कहू जे उमेश मंडलकेँ अजित जी फोनपर अहाँक परिवारक बारेमे कहलाह जे " शंकर देव की बाजत ओ सभ तँ नीच अछि"। आब हम ईहो अपन मूँहसँ केना कहू जे ओही वर्ताक क्रममे अजित जी उमेश मंडलकेँ ईहो कहलखिन्ह जे " जँ एकौटा खनदान नीक पकड़ाएल रहितै तँ शंकरदेव सभहँक संस्कारे दोसर रहितै"। एतए धरि तँ ठीक छल मुदा क्षमा सहित हमरा अपन मूँहसँ कहए पड़ि रहल अछि जे अजित जी ओही वार्ताक्रममे कहलकिन्ह जे " पता नै कोन खढ़ खा कए शंकरदेव सभकेँ जन्माएल गेल छै"। ओना जे कहियौ अजित जी हीरा आदमी छथि आ अहाँ सभ सन कुकर्मी केर फेरमे ई दिन देखए पड़ि रहल छन्हि।

    आब आबी इतिहासपर ई केखनो जरूरी नै छै जे हम अनुवाद पुरस्कार समयमे बोधगर नै रही तँए ओकर ज्ञान नै हेबाक चाही। जँ अहाँ ई सिद्धांत मानै छी जे कोनो घटना कालमे जे आदमी रहए सएह टा ओकर इतिहास जानि सकैए तखन विजयदेव जी ई कहू जे अहाँ रामदेव झाकेँ अपन पिता किएक मानै छी....... सृजन कार्य घटना लगमे तँ अहाँ नै रहिऐ :P:P
  • Vijay Deo Jha Ashish Anchinharअहाँ के बाप अगिया खड खा क अहाँ के जन्मने छलाह तैं अहाँ एहन बंश कुल्हरि के जन्म भेलई। बाऊ अपन वंश के बंश कुल्हरि परंपरा के आगू बढ़ाऊ। बुरि रे बाप के कारी अक्षर महिस बराबर आ बेटा चललाह साहित्यकार बनय। ट्रक ट्रांसपोर्ट के खलासी किरानी चलल खानदानी बनय आ ताहि पर सअ साहित्यकार हेबाक दावा ओह। अहाँ अपन खानदान में प्रथम बीए पास छि बाप मरल अन्हरिया में आ बेटा के नाम पावर हाउस। हरजोतवा खानदानी खवसा गजेन्द्र के खलासी करैत दिन बितई छनि। हाँ भाई एकटा लघु कथा (बिहनि) गज्जू बाई क महफ़िल में साहित्य अकादमी के हारल जुवारी सब अपन गम गलत करय लेल पहुचला गज्जू बाई हुलसी क पान क गिलौरी देलखिन आसी बाई के कहलखिन होऊ एकटा फरकैत ग़ज़ल गाउ आ उमा बाई के कहलखिन अहाँ शानदार ठुमका लगाऊ अहाँ के तिनु बाई क जुगलबंदी स आवाद रहय ई कोठा। पांच साल धरि बनल रहू एहिना और कुथू दर्द भरे नगमे। मैथिलि के ज्ञान नै आ लुगदी लाल अंग्रेजी के ज्ञान द रहल छथि।
  • Vijay Deo Jha हुए जो आप पैदा तो शैतान ने कहा की आज हम भी साहबे औलाद हो गए
  • Vijay Deo Jha बिलारि गेली भट्टा बाड़ी त कहलथिन यैह थिक वृन्दावान। कुलशील हीन बाप के भाई कहय बला। खबास कहि रहल अपना के साहित्यकार
  • Vijay Deo Jha आऊ भाई करी हम सब ऑन लाईन मोसयारा
  • Vijay Deo Jha 1985 में किछु विलक्षण किस्म के बागार के जन्म भेल छल ओही में में सअ एकटा भअ गेलाह ऑन लाईन साहित्यकार
  • Vijay Deo Jha भाई एखन अहाँक एक गौआ स गप भअ रहल छल ओ अहाँक सन्दर्भ में बड़ा सटीक बात कहलनि नाम नै बाजब किएक की अहाँ हुनको गरियेनाई शुरू क देबनि। हम सभ भट्ठा धरै काल में उच्चारण केलिये ॐ नम: सिद्धंम तैं माता सरस्वती के कृपा भेल आ अहाँ पढ्लौ ओना मासी धं गुरूजी चितंग तै अपनेक मूह सअ मात्र गारि निकलि रहल अछि। स्कूल में अहाँ क सहपाठी सिखलक ग सअ गणेश आ अहाँ पढ़लौ ग सअ गदहा। ई संस्कार के बात छै। हमर खानदान पर त पेज दर पेज लिखलौ लेकिन कने अपनों खानदान पर लिखतौ त लोक सब के पता चलितई जे अपने कुल में के सब साहित्यकार भेलाह। नै लिखि रहल छी एकर अर्थ ई जे अपने क परिवार एहि मामला में शुन्य। तखन किलोल किये कअ रहल छी। अहाँ खबास छी। Ashish Anchinhar
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha--------सभसँ पहिने तँ ई कही जे अहाँ खढ़ खा कए जन्मल छी कि की खा कए से हमरा नै पता .... ई विचार अपनेक मित्र अजित अजाद जीक छन्हि जे ओ फोनपर उमेश मंडलकेँ कहलखिन्ह । तँए हे परम मूर्ख.... अज्ञानी... नीच पामर बूड़ि विजयदेव जी पहिने ई पढ़ू जे की लिखल गेल छै तखन आन्हर बनि नाचू।

    दोसर बात जे अहाँ अपने कोन संस्कारी छी..... पहिने भीमनाथ झा जीकेँ गारि पढ़ै छिऐन्ह तखन हुनका मामा कहै छीऐन्ह ई अहाँक संस्कार थिक। सभ साहित्यकारकेँ शंकरदेव जे पोस्टकार्ड लीखि गारि देने छथिन्ह से अहाँक संस्कार थिक। पहिने अहाँ अपन भाए शंकर देवसँ पूछि लिअ, एक साल पहिने हुनका आ हमरा गजल मादें बात भेल रहए... जाहिमे ओ विदित जीकेँ हरामी कहने रहथि आ अजित अजादकेँ कुकुर। आब ई कहू जे शंकर देव अपने ससूरकेँ हरामी कहि रहल छलाह मने ई संस्कार थिक अहाँ सभकेँ। जँ एहन संस्कार साहित्यकारकेँ होइ छै तखन हम ई बिना कोनो हिचकिचाहटकेँ स्वीकार करै छी जे हमर खनदानमे एहन कोनो साहित्यकार नै भेलाह। एकटा बात आर विदित जी सगर रातिमे सभहँक सामने कहने छथिन्ह जे रामदेवक पूरा खनदान नीच छै।जे सभ रहथि तिनका सभसँ पूछि लेब। ओना विदित जी सेहो नीक लोक छलाह मुदा प्ररब्धक लेखसँ हुनक संगति अहाँ संगे भेलै आ ओहो ..... खएर जे किछु विदित जीमे अहाँ सभ जकाँ अनुवांशिक गुण नै छन्हि ओ मात्र कुसंगतिमे फँसल छथि मुदा केखनो काल कए हुनक सद्बुद्धि जागि जाइ छन्हि से नीक

    ओना हमर गौंआ अहाँकेँ जे कहने हेता से सही कहने हेता। ओनाहिते जेना अहाँकेँ अजित जी कहने छलाह :P:P
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha-----ओना हमर फेर कहब जे ----अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव..:P:P
  • Vijay Deo Jha Ashish Anchinharओना हमर भाई कहलनि जे ग़ज़ल के ज्ञान प्राप्त करवाक हेतु हुनका कोनो खबास सअ गप करइ के जरुरत नै। हुनका अहाँ सअ कहियो बात नै भेल छनि ई बात अहाँ मनगढ़ंती बाजि रहल छी। ओ अहाँ सअ ग़ज़ल के मादे गप करताह!!!! अहाँ कहाँ के गज़लकार आ कोन श्रेणी के साहित्यकार जे अहाँ सअ गप्प करताह। खलासीगिरी -खबासी आ साहित्य दुनुं दू विधा छै। अहाँ खलासी आ खबास छी आ सैह रहब। सब गोटे सब बात अहीं के कहैत छथि जेना विद्यापति अहाँ के कान में कहि देला जे ओ हजाम छथि। अहाँ एक डारि सअ दोसर डारि पर कूदि रहल छी डsर भ रहल अछि जे हाथ हुसि गेलौं तअ। अहाँ हमर अनुवंसिकता के सिद्ध कअ रहल छी भ सकैये अहाँ सही हो लेकिन भाई अहाँ के खानदान में कियो साहित्यकार नै रहलाह तअ अहाँ केना साहित्यकार भअ गेलियई। आ विदित जी और की सब बात कहलनि सेहो लिखू। अहाँ खबास छी खबास रहब ग़ज़ल कुठने खानदान नै सुधरत। खबास छी खबास। हम त बस मज़ा लअ रहल छी अहाँ संगे। फ्रस्टियाउ नै हम अहाँ के आशीर्वाद दैत रहब
  • Vijay Deo Jha अहाँ के गौआ कहलनि जे अहाँ पारा टीचर लेल आवेदन देने रहियई से अहाँ के सेलेक्सन नै भेल की कारण ओवर क्वालिफाईड छलौह की अंडर क्वालिफाईड। आ आशीष साहित्य अकादमी के चुनाव अहाँ के गाव घर के मुखिया आ सरपंच के चुनाव में अंतर छई। साहित्य अहाँ के बस के बात नै। मोन पड़ये जखन बच्चा रहि तखन हम बच्चा सब कोनो सड़लाही कुकुर के देह पर पानि ढारि दियै आ कुकर किकियाई त मज़ा ली। हम एखन एहने अनुभव क रहल छी। आब बुझल। Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha Ahan badd bhari ke buri chhi Ashish Anchinhar blog bana ka record k rahal chhi. naukari chakari nai ai ta malik ker bes khabasi ka rahal chhi. lagal rahu
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha----हा.हा..हा... च्च्....च्च.......च्च्.......... अरे भाइ विजय देव जी हम सभ तँ अहाँकेँ मजा देबहे लेल तँ बैसल छी। हमरा सभसँ अहाँकेँ जतेक मजा चाही जेहन मजा चाही 24x7 बेसिसपर अहाँ लेल उपल्बध अछि। ओना अहाँ अपनेहो बूझि रहल हेबै आ लोको बूझि रहल अछि। ई तँ अहाँ लेल जे मजा तैयार कएल गेलैए तकर ट्रायल वर्सन अछि। आरिजिनल प्रोडक्ट तँ एखन बाँकिए अछि। पहिने अहाँ ऐ ट्रायल वर्सनकेँ एप्रभूव तँ करू। ओहिकेँ बाद तँ हम मजा देबएमे कोताही कहाँ करब। अहाँ एखनेसँ घबड़ाउ नै.. बकौल गालिब-------

    इब्तदाए इश्क मे रोता है क्या
    देखिए आगे-आगे होता है क्या :P:P

    बस एखनेसँ अहाँ मजा लेल किएक फिरीसान छी। बहुत दृश्य तँ बाँकिए अछि। मजामे स्कीम सेहो देब हम सभ अहाँकेँ। एकटा मजा संग एकटा फ्री। ओना अहाँ मजा लेबएक संग शाइरीकेँ सेहो दिवाना छी। तँ हमरा सभ लग सेहो स्कीम छै जे एकटा मजा लिअ आ संगमे एकटा शाइरी सेहो बिल्कुल मुफ्त। एकटा ट्रायल वर्सन ऐ मजा आ शाइरीकेँ देखा रहल छी.... बकौल स्वामी अनचिन्हारानंद---------

    अर्ज अछि विजयदेव जी जे---

    जइ कारखानामे तोहर माए-बाप तोरा बनेने हेतौ
    कसम तोहर माए-बापकेँ बहुत मजा आएल हेतौ
    मुदा जखन-जखन देखैत हेतौ तोहर सभहँ नीच कर्मकेँ
    रे विजय-शंकर तोहर माए-बाए बहुत पछताएल हेतौ...... :P:P

    की स्कीम ठीक छै ने.... कने जल्दिये बताएब।

    आब ऐ मजा लेलाक बाद पहिने तँ अहाँ अपन भाएसँ पूछि लिअ जे हमरासँ की बात केने रहथि। हमरासँ अपन बापक लेखकेँ उद्धार करबाक आग्रह केने रहथि। ओ हमरा कहने रहथि जे हमरो सभहँक काज छै मैथिली गजलपर तकरा देखार करू। नै विश्वास हुअए तँ ऐ लिंकपर आउhttp://anchinharakharkolkata.blogspot.in/2011/10/blog-post_6330.html आ अपन भाए वा बापक हस्ताक्षरमे लिखल " जून १९८४ " लिखल देखू।

    विदित जी की बाजल रहथि से हुनकेसँ पूछि लिअ। हुनकर बेटीक मरलाक बाद जे हुनकर नातिन संगे शुरूआतमे अहाँ सभ केलिऐ तकर बदला तँ समय एलापर लेबे करता। अहाँ सभ जे हुनका आज अखबारमे गारि देने रहिऐन्ह से लिंक हम दी ताहिसँ पहिने अहाँ सभ अपने मूँहसँ ई बात स्वीकार कए लिअ।

    जाहि पाँच साल पर अहाँ सभ कूदि रहल छी तकरा संग अहाँ सभ की केने छिऐ से तँ सभ जनैए। कने धैरज धरू। ओ लोक सभ तँ बस मौका ताकि रहल अछि अहाँ सभसँ बदला लेबए लेल। जा धरि कुर्सी नै छलै ता धरि अहाँ सभहँक संग, आब तँ ओ दुश्मन अछि से जानि लिअ।

    ओना हमर फेर कहब जे ----अहाँ सभ बापुते साहित्य पर डिस्कशन लेल नै छी। अहाँ सभमे जे अनुवांशिक गुण मारि-गारिकेँ अछि ताहिमे लागल रहू विजयदेव..:P:P
    anchinharakharkolkata.blogspot.com
    A BLOG OF MAITHILI-ANGIKA-VAJJIKA GHAZAL & SHER-O-SHAYRI. गजल मने प्रेम प्रेम मने जीवन जीवन मने अहाँ
  • Vijay Deo Jha अहाँ अपन डीएनए टेस्ट करवाऊ आशीष अहाँ के संगे समस्या अछी निक होयत जे मर्यादा में रही। अहाँ अपन पिता के बाप कहै छियनी येह संस्कार भेटल। घट्टक भटकि जायत लोक कहत की अहाँ बागरे नै पागल आ मानसिक रूप सअ पंगु निर्लज सेहो छी, पतित कुलहीन मुर्ख, अपन बाप के माय के घरबला कहय बला कुल के कलंकी। खबास छी अहाँ खबास। Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha औ बुरि पहिने अपन बापक कल्याण करू बंश कुल्हरी पतित। एह्ह ग़ज़लकुत्था। ग़ज़ल कुथई छथि। मलिकवा कते टाका दैये महिना के खलासी बनल साहित्यकार



    Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha Though I am not a shayar like you, but, can appreciate what you have
    written which explain your rearing and all that you have inherited from
    your family and forefathers. I should believe that a couple of people might
    have called you in appreciation. They must be people of your class because
    a civilized person will hardly dare to get associated with you since you
    are mal-product—metaphorically and quite literally. I request you to kindly compile these in the book form: it will certainly be selected for highest literary award Sahitya Akadmi Award and the Gyanpith Award. Such a highly classical shayari; I am sure your parents, brothers and sisters will
    appreciate this during your midnight mushayara. Ashish Anchinhar
    19 hours ago via  · Edited · Like
  • Vijay Deo Jha You are well versed in racial discourse. well I will like to know whether you or anybody in your family really lift lahanga during your moshayara Mr Ashish Anchinhar
  • Vijay Deo Jha Monkey are you referring your past birth or talking about this birth shayar Anchinhar.
  • Vijay Deo Jha Monkey are you referring your past birth or talking about this birth shayar Anchinhar.
  • Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha----जल्दिये ओ चिट्ठी सभ सोझा आएत जाहिमे अहाँ पूरा परिवार मीलि क' मैथिली साहित्यकार सभकेँ गरिएने रहिऐ।..
  • Vijay Deo Jha By this time you have enriched your dictionary of vile and vitriol. I can get the sense of your rearing Anchinhar


Ashish Anchinhar Vijay Deo Jha----हँ आब हमरा लगैए जे अहाँकेँ पूरा मजा आबि रहल अछि। जियो रे राजा..... खूब नाचू अपन लंहगा उठाक। आब हमरो बुझा रहल अछि जे मजा आबि रहल अछि करीब १०-११ टा लेखक हरेक जगहसँ तँ हमरा कहबे केलाह जे नै आब जरूर विजयदेवकेँ मजा आबि रहल हेतै। लगले हाथ २ घंटा पहिने नेपालसँ एकटा युवा आ एकटा प्रौढ़ लेखक केर मेल सेहो आएल अछि। मुदा हम तँ एतबे कहब विजय देव जी जे ई तँ शुरूआत अछि अहाँ एखनेसँ घबड़ाउ नै.. बकौल गालिब-------

इब्तदाए इश्क मे रोता है क्या
देखिए आगे-आगे होता है क्या :P

जहाँ धरि DNA केर गप्प छै पहिने अपन करबा लिअ विजय देव जी। ओहूसँ नै हुअए तँ एहिने ऐ https://dbb13891-a-96a2f0ab-s-sites.googlegroups.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/PANJI_CRC.pdf?attachauth=ANoY7conXphoNoDM29lEjcMSx75j9FA9kGRPfMDeXiB6tM0-AkmOSUReUv_16zTp8j_UhzIXGeE654pO-UnEub8fwuiY0QPDMBZQqQ82DrytWlTdFOXK8oDWMjrviquKsLypwQC3HKzQ2YEkOOpz-6ZfZg9LCNM9QIiSwGxjYKIVl9XpprtjgsJ4AWtEBqfMopcFQNAhOc2OtYfzsY2iaQvGLYgWtaCoFw%3D%3D&attredirects=0 लिंकपर आबि क' अपन समाजिक DNA देखि लिअ। लोको सभकेँ आ अहाँकेँ अपनो ई अंदाज भ' जाएत जे अहाँ सभ बाप-पुतेकेँ रंग कारी किए अछि। अहाँ सभहँक खूनमे केकर खून मिलल अछि जे अंदाजा भए जाएत :P 

एकटा बात आर जेना बानर लग मोतिक माला नै सोभै छै तेनाहिते अहाँ मूँहसँ संस्कारक बात नै नीक लागैए। पहिने तँ भीमनाथ झा जीककेँ गारि पढ़ै छि आ तखन हुनका मामा कहै छी। हमरा तँ लगैए जे अहाँ अपन बापकेँ बाप कहबासँ पहिने गारिए देने हेबै। माए-बहीनिकेँ माए-बहीनि कहबासँ पहिने सेहो अहाँ अपन माए-बहीनेकेँ गारि देने हेबै। तँए अहाँ संस्कारक गप्प नै करू :P

आइ अहाँकेँ संस्कारक चिन्ता किए अछि ? जहिया सभ लेखककेँ चिट्ठी लीखि कए अहाँ सभ बापुते गरियाबै छलिऐ तहिया कतए छल अहाँ सभहँक संस्कार :P